"समाजीकरण समरसता का आधार"

                              समाजीकरण समरसता का आधार:

मनुष्य जन्म से एक संगठित शारीरिक ढांचा होता है; जिसके अंदर विकसित होने की अपार संभावनाए होती हैं। उसका न कोई नाम होता है और न ही जाति, धर्म और संप्रदाय होता है। वह न कोई भाषा जानता और न ही वह देश काल और समाज को पहचानता है। परंतु अपनी विकसित होने की अपार क्षमताओं के दम पर अपना विकास करता है। घर और समाज उसे उसकी पहचान देता है। घर में, समाज में उसे किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए, यह सब उसे घर-परिवार के सदस्यों, विद्यालय के गुरुओं और मित्रों, आस-पास के लोगों और रिश्तेदारों-परिचितों के आचरण और उनके बताने से सीखने को मिलता है। परिवार, मित्र, रिश्तेदार-परिचित, पड़ोसी, शिक्षा, राज्य और जनसंपर्क के साधन समाजीकरण के माध्यम हैं। सीखने और सिखाने की इसी प्रक्रिया को समाजीकरण कहा जाता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में समाजीकरण की सबसे प्रमुख भूमिका होती है। व्यक्ति जन्म से ही अपने गुणों को प्राप्त नहीं करता है, बल्कि समाज के सदस्य के रूप में वह धीरे-धीरे अर्जित करता है। समाजीकरण की प्रक्रिया ही निर्धारित करती है कि व्यक्ति बड़ा होकर समाज में कैसा व्यवहार करेगा और व्यक्तियों का व्यवहार ही किसी भी समाज का भविष्य निर्धारित करता है। समाजीकरण द्वारा व्यक्ति समाज की संस्कृति के बारे में सीखता है और उसी के अनुरूप व्यवहार करने की अपेक्षा की जाती है। घर, परिवार और समाज में अनुशासन, नैतिकता, समाज के प्रति दायित्व और कानून व्यवस्था का आधार समाजीकरण ही है। हम यदि चाहते हैं कि समाज में बेटियों और महिलाओं को सम्मान मिले, कानून व्यवस्था का सम्मान हो, सड़क पर अनुशासन का पालन हो, लोग आस पास के वातावरण को स्वच्छ रखें, पर्यावरण की रक्षा हो, आतंकवाद और हिंसा खत्म हो, देश और राष्ट्र का समग्र विकास हो; तो घर, परिवार, विद्यालय और राज्य द्वारा समाजीकरण पर पूरा ध्यान केन्द्रित करना होगा। मेरा पूर्ण विश्वास है कि आदर्श और सभ्य समाज का निर्माण कानून के डर से नहीं, समाजीकरण द्वारा ही स्थापित हो सकता है। कानून समस्याओं अल्पकालिक समाधान दे सकता है, दीर्घकालीन और पूर्ण समाधान समाजीकरण द्वारा ही संभव है। 


SHARING SOME LINES BORROWED FROM THE BOOK OF MY YOUNG CHILD ROHAN


CHILDREN LEARN WHAT THEY LIVE

If a child lives with criticism,
He learns to condemn.

If a child lives with hostility,
He learns to fight.

If a child lives with ridicule,
He learns to be shy.

If a child lives with shame,
He learns to feel guilty

If a child lives with tolerance,
He learns to be patient.

If a child lives with encouragement
He learns confidence.

If a child lives with praise,
He learns to appreciate.

If a child lives with fairness,
He learns justice.

If a child lives with security
He learns to have faith.

If a child lives with approval,
He learns to like himself.

If a child lives with acceptance and friendship,
He learns to find love in the world.

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