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Showing posts from April, 2017

"लोगों की सक्रिय भागीदारी विकास का आधार"

                              "लोगों की सक्रिय भागीदारी विकास का आधार" गांवों या शहरों में अपेक्षित विकास के अभाव का कारण, सरकारी योजनाओं और सरकारी निधि (FUND) की कमी नहीं बल्कि सरकारी योजनाओं व उनके क्रियान्वयन की प्रकिया की सही जानकारी का अभाव तथा सरकारी निधि के सदुपयोग के प्रति लोगों में जागरूकता की कमी है। वर्तमान में विकास प्रकिया में सक्रिय जन भागीदारी अथवा जन सहभागिता का अभाव ही नहीं, बल्कि पूर्ण उदासीनता भी है । "कोउ नृप होउ, हमें का हानि" कहावत आज भी प्रासंगिक है । लोकतंत्र केवल एक चुनावी प्रकिया मात्र बनकर रह गया है और चुनाव आज भी जाति, धर्म, संप्रदाय की राजनीति के इर्द-गिर्द धनबल, गुंडागर्दी, घृणा और नफरत फैलाने वाले हथियारों के सहारे संचालित हैं। स्वास्थ्य सुविधाएँ, अच्छी शिक्षा, स्वच्छ पेयजल, आवास सुविधा, कानून व्यवस्था इत्यादि आज भी हमारे लिए कभी सच न होने वाले सपने हैं। इन परिस्थितियों में केवल सरकार और प्रशासन की आलोचना करना और अपने नागरिक कर्तव्यों का पालन न करना लोकतंत्र का सबसे बड़ा अ...

"समाजीकरण समरसता का आधार"

                              समाजीकरण समरसता का आधार: मनुष्य जन्म से एक संगठित शारीरिक ढांचा होता है; जिसके अंदर विकसित होने की अपार संभावनाए होती हैं। उसका न कोई नाम होता है और न ही जाति, धर्म और संप्रदाय होता है। वह न कोई भाषा जानता और न ही वह देश काल और समाज को पहचानता है। परंतु अपनी विकसित होने की अपार क्षमताओं के दम पर अपना विकास करता है। घर और समाज उसे उसकी पहचान देता है। घर में, समाज में उसे किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए, यह सब उसे घर-परिवार के सदस्यों, विद्यालय के गुरुओं और मित्रों, आस-पास के लोगों और रिश्तेदारों-परिचितों के आचरण और उनके बताने से सीखने को मिलता है। परिवार, मित्र, रिश्तेदार-परिचित, पड़ोसी, शिक्षा, राज्य और जनसंपर्क के साधन समाजीकरण के माध्यम हैं। सीखने और सिखाने की इसी प्रक्रिया को समाजीकरण कहा जाता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में समाजीकरण की सबसे प्रमुख भूमिका होती है। व्यक्ति जन्म से ही अपने गुणों को प्राप्त नहीं करता है, बल्कि समाज के सदस्य के रूप में वह धीरे-धीरे अर्जि...