"एक गुड़िया की पुकार"


मेरा नाम गुड्डी है। मेरी काकी (माँ) मुझे प्यार से गुड़िया बुलाती है। मैं धौलपुर जिले (राजस्थान) के एक छोटे से गाँव में पली-बढ़ी हूँ। मेरे पिता किसान हैं। काकी घर के काम के साथ-साथ खेत के काम में भी काका (पिता) का हाथ बटाती है। पशुओं का काम भी काकी करती है। काका के पास एक बीघा खेत, दो भैंस और एक गाय है। घर का प्रतिदिन का खर्च दूध बेच कर चलता है। खेत की कमाई में से साहूकार का पैसा दिया जाता है, जो साल भर विभिन्न ख़र्चों, जैसे दवाइयों का खर्च, त्योहारों का खर्च, हमारे वार्षिक कपड़ों का खर्च, भात-पछ का खर्च (gifts have to be given to sisters and daughters on various occasion) इत्यादि के लिए लिया जाता है। काका हमेशा मूल धन से ज्यादा व्याज का पैसा साहूकार को चुकाते हैं। हाँ, काका का सपना है कि अपना भी एक पक्का घर हो और इसलिए काका कुछ-कुछ पैसा उसके लिए बचाते हैं। 

    मैं काकी के लिए खुशकिस्मती लेकर नहीं आई क्योंकि मैं काकी की तीसरी बेटी हूँ और बेटी को वारिस नहीं माना जाता है। दादा-दादी काकी को उलाहना देते हैं कि वह उनके परिवार को वारिस नहीं दे सकती। बेटी तो पराया धन होता है और शादी के बाद ससुराल चली जाएगी। बुढ़ापे का सहारा तो बेटा ही होता है। काकी को हमारी परवरिश के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता था। घर, खेत और पशुओं के काम के साथ ही काकी को हमारा ध्यान रखना होता था। काकी चाहती थी कि हम बहनें पढ़ाई करें और अच्छी जगह पहुँचें। काका ने सबसे बड़ी बहन को स्कूल नहीं भेजा क्योंकि वह घर के काम में काकी का हाथ बटाती है।

    मैं और मुन्नी हमारे प्राथमिक सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते हैं। हम दोनों बहुत पढ़ना चाहते हैं और मुन्नी ने तो पाँचवी कक्षा उत्तीर्ण भी की है। काका मुन्नी को आगे की पढ़ाई के लिए पड़ोस के गाँव में नहीं भेजना चाहते। इसका कारण काका ने हमें नहीं बताया परंतु काकी से मालूम हुआ कि पड़ोस का गाँव ऊंची जात के लोगों का है और हमारे गाँव का कोई भी व्यक्ति अपनी बेटी को वहाँ पढ़ने नहीं भेजना नहीं चाहता; क्योंकि स्कूल में शौचालय नहीं है और शौच के लिए बच्चों को खुले खेतों में जाना पड़ता है। काकी ने बताया कि कई साल पहले रामदीन चाचा कि बेटी छोटीबाई के साथ पड़ोस के लड़कों ने छेड़छाड़ की थी। छोटीबाई पढ़ने में बहुत अच्छी थी और डॉक्टर बनाना चाहती थी; परंतु उस घटना के बाद उसकी पढ़ाई छूट गयी और रामदीन चाचा ने तुरंत उसकी शादी कर दी। काकी ने एक दूसरा कारण भी बताया मुन्नी को आगे नहीं पढ़ाने का; वह यह कि मेरी सबसे बड़ी दीदी की शादी का सामाजिक दबाव काका पर बहुत है। गाँववाले काका और दादा-दादी को अकसर बोलते रहते हैं कि लड़की के लिए अब लड़का खोजना शुरू करो। बच्ची जितना जल्दी अपने घर जाए उतना भला है। काका का मन है कि मुन्नी की शादी भी बड़ी दीदी के साथ ही कर दी जाये। इससे शादी का खर्चा तो कम होगा ही; साथ-साथ दोनों बेटी एक साथ निकल जाएगी और काका की जिम्मेदारी भी कम हो जाएगी। दादी हमेशा कहती की मुन्नी को अच्छा पढ़ा दिया तो, लड़का भी अच्छा खोजना पड़ेगा और उसके के लिए बड़ा दहेज देना पड़ेगा जो की काका के पास नहीं है। अंततः मुन्नी को अपना मन मारना पड़ा और पढ़ाई छोड़नी पड़ी। 

    एक दिन मेरे फूफा जी (Uncle) दीदी के लिए रिश्ता लेकर आए। फूफा जी का कहना था कि लड़का बहुत अच्छे परिवार से है और दहेज कि भी बहुत बड़ी मांग नहीं है। फूफा जी ने आगे बताया कि लड़के के पिता की केवल एक छोटी सी शर्त है कि वह अपने तीनों लड़कों कि शादी एक साथ करना चाहते हैं। फूफा जी ने दादा-दादी और काका को इस बात के लिए राज़ी कर लिया कि हम तीनों बहिनों की शादी एक साथ कर दी जाये। परंतु मुझे मेरे रिश्ते और होने वाली शादी की जानकारी लगन के दिन मिली। उस दिन मैं काकी के पास खूब फूट-फूट कर रोई। मैंने काकी को बताया की मैं शादी नहीं करना चाहती। मैं पढ़ना चाहती हूँ और कुछ बनाना चाहती हूँ। मैंने काकी कहा कि मैं उसके पास रहना चाहती हूँ और इतना जल्दी ससुराल नहीं जाना चाहती। मुझे आज भी विश्वास है कि काकी मेरी शादी नहीं करना चाहती थी; परंतु दादा-दादी और काका के सामने वह कुछ नहीं कर पाई और मेरी दस साल की उम्र में शादी हो गई। मेरे सारे सपने विखंडित हो गए। मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा। मुझे खेलने-कूदने की उम्र में बहू बनाना पड़ा और संसार के सारे व्यवहार करने पड़े। काकी का प्यार हमेशा के लिए मेरे से अलग हो गया। काकी की भीगी आँखें आज भी रोने को मजबूर कर जाती हैं।

     मैं आज इस समाज से पूछना चाहती हूँ कि क्या मैं इंसान नहीं हूँ? क्या मुझे सपने देखने का हक नहीं है? क्या मुझे खेलने-कूदने और आगे बढ़ने का अधिकार नहीं है? क्या मुझे अपने पिता की गरीबी के कारण स्कूल छोड़ना ही पड़ेगा? क्या मुझे अपने पिता की गरीबी के कारण बालविवाह का शिकार होना ही पड़ेगा? क्या मेरी दीदी मुन्नी और छोटीबाई जैसी बेटियों को समाज के कुछ लोगों के कारण और स्कूल में शौचालय न होने की वजह से स्कूल छोड़ना पड़ेगा? क्या इस समाज में हम गरीब बेटियों के कोई अधिकार नहीं हैं? क्या समाज विकास के लाभ केवल कुछ लोगों को ही मिलने चाहिए? क्या हम लोगों के जीवन कि मूलभूत ज़रूरतें पूरी नहीं होनी चाहिए? क्या इस समाज की जिम्मेदारी नहीं है कि हम लोगों को भी विकास का हिस्सा बनाये? मैं आज इस समाज और आप लोगों को चिल्ला-चिल्ला कर कहना चाहती हूँ कि मैं भी विकास का हिस्सा बनाना चाहती हूँ।

Comments

  1. Sir,
    initiative that you have taken to write the feelings of of billion of deprived class people and also the rural India is great thing .also the step you had taken from Danora village is highly appreciable by conducting first womens panchayat of Rajasthan. India needs officers like you ,who understand the feelings of poor people and humanity ground .there are few officers like you all other closed themselves in office cabin thats why Indian society needs top rank officers like you . go ahead we will will with you.

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  2. Agale sir, I always receive positive energy and inspiration from your personility. I strongly believe that we are the luckiest person of the society to be in Civil Services. We as civil servant have top most responsibility to deliver for society. I am trying to give my best for my society.

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  3. Superb. This story covers all the points like children education, health, hygiene and dowry. We all have to share our support for this noble cause and take our India to next level.

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  4. Wonderful depiction of a girl's life in a village. There are many Guddi in villages. They don't get full education, they become victims of a dowry, child marriage, lack of toilets etc. We should try to change the perception of people that girl child is not a burden. Higher education does not mean higher dowry but it increases the learning, quality of life and potential of good employment. There are so many scheme from Sukanya Samraddhi Yojna, many scholarships and Beti Bachao Beti Padhao. We should change the attitute of people. We should not kill the dreams of our daughter just because it discomforts a little. Please educate girls. One day you will be able to take pride in their achievement and you will realize that there is no difference between girl and boy. There are already many examples like Geeta Fogat (watch Dangal movie) and Babita Fogat.

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  5. निश्चित ही आपने अपने लेख द्वारा सब का ध्यान एक ऐसी ज्वलंत समस्या की ओर केंद्रित किया है जो हमारे समाज को अंदर तक खोखला कर चुकी है।इसका मुख्य कारण गरीबी , अज्ञानता और अशिक्षित होना है। उनको शिक्षित और जागरूक करके इस समस्या का अंत किया जा सकता है।जिसके लिए हम सभी सदैव प्रयासरत रहते है।
    जय हिंद

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