"राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में हमारी सहभागिता"

                                   "राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में हमारी सहभागिता"

राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में हमारी क्या सहभागिता होनी चाहिए यह बहुत ही विचारणीय प्रश्न है| आज भी हम पुरानी मानसिकता और सामाजिक बंधनों से बाहर नहीं आ पाए हैं| आज भी हम व्यक्ति को उसके जाति, धर्म और नस्ल के आधार पर देखते हैं और व्यवहार करते हैं| आज भी हम लोकतांत्रिक संस्थाओं में केवल संकुचित दृष्टिकोण और निहित स्वार्थों की वजह से प्रवेश करते हैं| आज भी नेतृत्व करता और आमजन के बीच भेदभाव की खाई बहुत गहरी है| आज भी सामान्य आदमी प्रशासनिक अधिकारियों से मिलने और अपने अधिकारों की बात रखने से डरता है| हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों और लोकतांत्रिक परंपराओं को और अधिक सिंचित करने की और मजबूत करने की आवश्यकता है| देश के प्रत्येक व्यक्ति को इन मूल्यों में ना केवल विश्वास रखना होगा बल्कि उन्हें जीवन में उतारना होगा| एक स्वस्थ और सुदृढ़ लोकतांत्रिक समाज की स्थापना द्वारा ही सामाजिक ताने बाने को बनाए रखा जा सकता है और एक समृद्ध राष्ट्र की कल्पना की जा सकती है|

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